संपन्न एससी-एसटी व्यक्ति को प्रमोशन में आरक्षण क्यों ? - सुप्रीम कोर्ट।

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संपन्न एससी-एसटी व्यक्ति को प्रमोशन में आरक्षण क्यों ? - सुप्रीम कोर्ट।

(टाइम्स ख़बर)।  आरक्षण को लेकर एक बार फिर बहस चल पड़ी है सुप्रीम कोर्ट में। इस बार विषय का विषय है अनुसूचित जाति(एससी) और अनुसूचित जनजाति समाज से जुड़े व्यक्ति को प्रमोशन में आरक्षण। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संविधान पीठ ने एससी-एसटी के संपन्न लोगों को प्रमोशन में आरक्षण दिये जाने संबंधित मसले पर सवाल उठाये हैं? अदालत ने सवाल उठाया है कि यदि एक व्यक्ति आरक्षण के अंतर्गत आता है और वह राज्य का सेक्रेटरी  है तो क्या उन्हें आरक्षण के लिये बैकवर्ड माना जाये।  जिस प्रकार क्रीमिलेयर का सिद्धांत ओबीसी के लिये लागू है वही सिद्धांत क्या एससी-एसटी के लिये लागू क्यों नहीं हो सकता है? दरअसल ओबीसी के संपन्न वर्ग को आरक्षण के लाभ से बाहर रखने के लिये क्रीमिलेयर के सिद्धांत को लागू किया गया। 

द-क्विंट में छपे रिपोर्ट के अनुसार सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ ने कहा कि  ‘‘एंट्री लेवल पर रिजर्वेशन, कोई समस्या नहीं। मान लीजिए, कोई ‘एक्स' व्यक्ति आरक्षण की मदद से किसी राज्य का मुख्य सचिव बन जाता है. अब, क्या उसके परिवार के लोगों को पदोन्नति में आरक्षण के लिए पिछड़ा मानना सही होगा क्योंकि इसके जरिये उसकी सीनियॉरिटी तेजी से बढ़ेगी.'' पीठ में जस्टिस कुरियन जोसेफ, आर एफ नरीमन, एस के कौल और इंदू मल्होत्रा भी शामिल थे.

किस-किसने किया प्रमोशन में रिजर्वेशन का समर्थन

गुरुवार दिनभर चली सुनवाई के दौरान, अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल, एडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, सीनियर एडवोकेट इंदिरा जयसिंह, श्याम दीवान, दिनेश द्विवेदी और पी एस पटवालिया समेत कई वकीलों ने SC,ST समुदायों के लिए प्रमोशन में आरक्षण का पुरजोर समर्थन किया. इन लोगों ने मांग की कि बड़ी पीठ को 2006 के एम नागराज मामले के 5 जजों की पीठ के फैसले पर फिर से विचार करना चाहिए.

साल 2006 के फैसले में क्या कहा गया था?

साल 2006 के फैसले में कहा गया था कि SC-ST समुदायों को प्रमोशन में आरक्षण देने से पहले राज्यों पर इन समुदायों के पिछड़ेपन पर आंकड़े मौजूद कराने की जिम्मेदारी है. साथ ही फैसले में कहा गया था कि सरकारी नौकरियों और कुल प्रशासनिक क्षमता में उनके अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के बारे में फैक्ट भी मौजूद कराने की जिम्मेदारी राज्यों की है.

वेणुगोपाल और दूसरे वकीलों ने आरोप लगाया कि फैसले ने इन समुदाय के कर्मचारियों के प्रमोशन को लगभग रोक दिया है. हालांकि, सीनियर एडवोकेट और पूर्व लॉ मिनिस्टर शांति भूषण और सीनियर एडवोकेट राजीव धवन ने प्रमोशन में आरक्षण का विरोध किया और कहा कि ये समानता के अधिकार और सार्वजनिक रोजगार में समान अवसर का उल्लंघन करता है. इस मामले में दलीलों का सिलसिला 29 अगस्त को भी जारी रहेगा.

नोट - इनपुट द क्विंट से।