अमेरिका और नाटो संबंध, अस्तित्व को लेकर सवाल : वरिष्ठ पत्रकार राजेश कुमार।

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अमेरिका और नाटो संबंध, अस्तित्व को लेकर सवाल : वरिष्ठ पत्रकार राजेश कुमार।

(राजेश कुमार, संपादक, टाइम्स खबर) ब्रिटेन की यात्रा पर गये अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने फिलहाल उन अटकलों पर विराम लगा दिया है कि अमेरिका नाटों से बाहर होगा। उन्होंने कहा कि ऐसा मैं कर सकता हूं लेकिन मुझे नहीं लगता है कि यह जरूरी है। नाटो इन दिनों सुर्खियों में है क्योंकि इसके सबसे ताकतवर देश अमेरिका ने इससे अलग होने की धमकी दी है। बताया जा रहा है कि अमेरिका के राष्ट्रपति ने नेटो को धमकी दी है कि यदि सदस्य देश अपने सकल घरेलू उत्पाद के दो प्रतिशत रक्षा के लिये नहीं देते हैं तो वह नेटो से बाहर आ जायेगा। राट्रपति ट्रंप ने सदस्य देशों को पत्र लिखकर याद दिलाया था कि वे धीरे धीरे रक्षा बजट बढायेंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वे भूल रहे हैं। ट्रंप ने यह भी कहा कि नेटो के सदस्य देश अमेरिका का फायदा उठा रहे हैं। अमेरिका के इस रूख से नेटो के भविष्य पर सवाल उठ खडा हुआ है। प्रतिद्धन्दी रूस ने नेटो को बेकार का गठबंधन कहा है। आईये जानते हैं कि नाटो क्या है? 

1. नाटो (नॉर्थ एटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन) यानी उत्तरी एटलांटिक संधि संगठन की स्थापना 4 अप्रैल 1949 को हुआ था वाशिंगटन में। यह एक सैन्य संगठन है और इसका मुख्यालय बेल्जियम (ब्रुसेल्स) में है।  

2. इस गठबंधन में अमेरिका और ब्रिटेन समेत कुल 29 देश हैं। इनके बीच सैन्य और राजनीतिक साझेदारी है। इनमें से किसी भी एक देश पर हमला होता है तो नाटो के सभी सदस्य उनकी मदद करेंगे। 

3. वर्तमान में नाटो के कुल 29 सदस्य हैं। इनमें से 12 सदस्य संस्थापक है। ये हैं - अमेरिका कनाडा, ब्रिटेन, फ्रांस, इटली, नीदरलैंडस, बेल्जियम, पुर्तगाल, डेनमार्क, आइसलैंड तथा लक्जमबर्ग। इनके अलावा ग्रीस, तुर्की, जर्मनी, स्पेन, चेक गणराजय, हंगरी, पोलैंड, बुल्गारिया, एस्टोनिया, लाटविया, लिथुआनिया, रोमानिया, स्लोवाकिया, स्लोवेनिया, अल्बानिया एवं क्रोएशिया तथा मोंटेनेग्रो इसके सदस्य हैं। मोंटेनेग्रो 29वां सदस्य है।

4. उपलब्ध जानकारी के अनुसार नाटो का संयुक्त सैन्य खर्च दुनिया के रक्षा खर्च का लगभग 70 प्रतिशत है। इनमें अमेरिका अकेला आधा खर्च वहन करता है और ब्रिटेन, फ्रांस, इ़टली और जर्मनी मिलकर 15 प्रतिशत खर्च उठाते हैं। 

दरअसल द्धितीय विश्वयुद्ध के बाद विश्व में दो शक्तियों का उदय हुआ - सोवियत संघ और अमेरिका। पश्चिमी देशों का कहना है कि द्धितीय विश्वयुद्ध के बाद सोवियत संघ ने पूर्वी यूरोप से अपनी सेनाएं हटाने से इंकार कर दिया औ वहां साम्यवादी शासन की स्थापना की कोशिश की। इसी का लाभ उठाकर अमेरिका ने साम्यवादी विरोधी नारा दिया और एक सैन्य संगठन बनाने के सुझाव दिया जो आपस में मिलकर एक साथ दुश्मन का सामना करेंगे। विश्वयुद्द के दौरान पश्चिमी युरोपीय देशों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ा था। अत: उनके आर्थिक विकास के लिये उन्हें अमेरिका से बड़ी उम्मीदें थी। ऐसे में अमेरिका का प्रस्ताव आया और यूरोपीय देशों ने उसका समर्थन कर दिया। अब नाटो की स्थापना के साथ ही पूरे विश्व में खासकर यूरोप में अमेरिका और तत्कालीन सोवियत संघ के बीच कोल्डवार शुरू हो गया।  

- सोवियत संघ ने नाटो के गठन और उसके गतिविधियों को देख इसे साम्यवाद विरोध के रूप लिया। और इसके जवाब में वारसा पैक्ट नाम सैन्य संगठन बनाया। यानी नाटो का विरोध करने के लिये सोवियत संघ ने पोलैंड की राजधानी वारस में पूर्वी यूरोप के समाजवादी देशों के साथ मिलकर वारसा पैक्ट की स्थापना की। 

- सोवियत संघ ने नाटो को साम्राज्यवादी और आक्रामक देशों के सैनिक संगठन की संज्ञा दी और उसे साम्यवाद विरोधी स्वरूप वाला घोषित किया।

- नब्बे दशक के शुरूआत में यानी साल 1990-91 में सोवियत संघ के विखंडन के साथ ही कोल्डवार यानी शीत युद्ध की समाप्ति भी हो गई। इसी के साथ वारसा पैक्ट भी समाप्त हो गया लेकिन नाटों का विस्तार विस्तार जारी रहा।       

अमेरिकी सैनिक नाटो सदस्य देशों मे भी तैनात हैं। इसमे खर्च भी होते हैं। साल 2014 में तय किया गया था कि नाटो सदस्यों की संख्या बढायी जाये जो अपने जीडीपी का 2 प्रतिशत खर्च करे। वर्तमान में अमेरिका अपने जीडीपी का साढे तीन प्रतिशत खर्च करता है। लेकिन ग्रीस, ब्रिटेन, इस्टोनिया और लातविया अपने जीडीपी का दो प्रतिशत ही खर्च करता है।   

सवाल उठाये जा रहे है कि कोल्डवार के बाद नाटो का क्या अब महत्व रह गया है? लेकिन अमेरिका ने इसकी भूमिका को ग्लोबल बना दिया है। वह अब शांति स्थापना के नाम पर विश्व में सैन्य शक्ति का इस्तेमाल कर रहा है। ऐसे में यह भी सवाल उठाये जा रहे हैं कि यदि संयुक्त राष्ट्र भी शांति स्थापना के लिये कार्यरत है तो ऐसे मे नाटो का अस्तित्व क्यों? कहा जा रहा है कि खर्चे को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति नाटो को लेकर जो भी बयान दें वास्तव में अमेरिका नाटो के बहाने संयुक्त राष्ट्र से इतर समानांतर व्यवस्ता चला रहा है। (लेखक राजेश कुमार, संपादक, ग्लोबल ख़बर)