कर्नाटक विस चुनाव : धर्म का महत्व, पर भारी है जातीय गणित कर्नाटक की राजनीति में

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कर्नाटक विस चुनाव : धर्म का महत्व, पर भारी है जातीय गणित कर्नाटक की राजनीति में

(राजेश कुमार, ग्लोबल ख़बर)। उत्तर भारत की तरह दक्षिण भारत की राजनीति का तानाबाना भी जातियों के इर्द-गिर्द ही बुना जाता है। यहां जातियों के हिसाब से राजनीति का मूल्यांकन करें तो सबसे पहले लिंगायत, वोक्कालिगा, कुरूबा, एससी, एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यक समुदायों के जनसंख्या को राजनीति के हिसाब से समझना जरूरी होगा। 

लिंगायत - इस बार के चुनाव में लिंगायत समुदाय का विशेष महत्व है। यह पहले एक पंथ के रूप में जाना जाता था बाद में इसे अगड़ी जाति के रूप में जाना जाने लगा। लिंगायत समुदाय के धर्मगुरू काफी समय सनातन धर्म से अलग धर्म की मान्यता देने की मांग करते रहे जिस पर कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने मुहर लगा दी। लेकिन केंद्र की बीजेपी सरकार ने इस पर कुछ नहीं किया है अभी तक। अंतिम मुहर केंद्र सरकार को ही लगानी है।  इसे लिंगायत अपने खिलाफ मान रहे हैं। कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष राहुल गांधी और बीजेपी अध्यक्ष दोनो ने हीं लिंगायत समुदाय से जुडे मठ धर्मगुरूओं से मुलाकात की। लिंगायत समुदाय ने बीजेपी के वजाय कांग्रेस को समर्थन देने का ऐलान किया है। इनकी आबादी लगभग 17-18 प्रतिशत है। अब देखना है कि लिंगायत समुदाय की ओर से कितना प्रतिशत वोट बीजेपी को जाता है। बीजेपी ने पूर्व मुख्यमंत्री येदुरप्पा को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया है जो लिंगायत समुदाय से हैं। कर्नाटक में जब पहली बार बीजेपी की सरकार बनी थी तो येदुरप्पा की बड़ी भूमिका थी। लिंगायत समुदाय ने बीजेपी को वोट किया और सरकार बनी। विवाद होने के बाद येदुरप्पा अलग हो गये और अगली विधान सभा चुनाव में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा। इस बार की स्थिति थोडी दिक्कत वाली है। बीजेपी की ओर से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार येदुरप्पा हैं जो लिंगायत हैं। लेकिन कांग्रेस पार्टी ने अलग धर्म की मान्यता देने के मामले में लिंगायत समुदाय की मांग को पूरा किया है इसलिये लिंगायत समुदाय ने कांग्रेस के पक्ष में वोट करने का ऐलान किया। यह बीजेपी के लिये झटका है वास्तव में चुनाव के बाद ही मालूम चल पायेगा। लिंगायत समुदाय के बडे नेता थे रामकृष्ण हेंगड़े। इसके बाद बने येदुरप्पा। लेकिन लिंगायत समुदाय ने अलग धर्म की मांग पूरी करने के लिये कांग्रेस के साथ खडी दिख रही है। लिंगायत में जो वीरेशैवा पंथ है वह लिंगायत से सहमत नहीं दिख रहे। इसकी संख्या चार प्रतिशत के आसपास है जो बीजेपी के साथ दिख रही है। यानी 13-14 प्रतिशत लिंगायत कांग्रेस के साथ है। 

वोक्कालिगा - जातीय आधार पर यहां वर्चस्व की मुख्य लड़ाई लिंगायत और वोक्कालिंगा के बीच ही रहा है। वोक्कालिंगा कर्नाटक की एक ताकतवर ओबीसी जाति मानी जाती है। पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवगौडा इसी समुदाय से आते हैं। इस जाति की संख्या लगभग 16 प्रतिशत है। संख्या और जाति की आर्थिक स्थिति अच्छी होने की वजह से वोक्कालिगा का राजनीतिक प्रभाव जबरदस्त है। इस समुदाय के अगुवा नेता एच डी देवगौडा है। इसका अंदाजा इसकी से लगा सकते हैं कि दोवगौडा के नेत़त्व वाली पार्टी जनता दल एस राज्य में बीजेपी के बराबर की टक्कर की पार्टी है। यदि वोट प्रतिशत से के हिसाब से देखे तो साल 2013 के विधान सभा चुनाव में कुछ प्रतिशत अधिक ही वोट मिले थे जेडीएस को बीजेपी के अपेक्षा। वोक्कालिगा समुदाय के बडे़ नेता एच डी देवगौडा भले ही हैं लेकिन इस जाति के मतदाता जेडीएस और कांग्रेस के बीच बंटे हुए हैं। यह बात भी कांग्रेस के पक्ष में ही जाता है। हालांकि इस वोक्कालिगा जाति को लुभाने  के लिये बीजेपी ने भी ऐड़ी चोटी की जोर लगा दी है। 

कुरूबा  - पहले नेतृत्व स्तर पर दो जातियों लिंगायत और वोक्कालिगा के बीच संघर्ष होते रही लेकिन अब कुरूबा जाति का भी यहां की राजनीति में विशेष महत्व है। कुरूबा जाति मुख्य रूप से चरवाहा जाति से जुड़ा है। कांग्रेस लीडर और वर्तमान मुख्यमंत्री सिद्धारमैया भी इसी जाति से आते हैं। कर्नाटक की राजनीति में कुरूबा जाति के कभी कोई खास प्रभाव नहीं रहा लेकिन सिद्धरमैया के मुख्यमंत्री बनने के बाद इनका महत्व काफी बढ गया है। मुख्यमंत्री ओबीसी समाज से हैं इसलिये वोटो का बंटवारा कांग्रेस और जेडीएस के बीच बंटने की संभावना है। इनकी संख्या 8 प्रतिशत के आसपास बताई जाती है।  

 एसी-एसटी-ओबीसी - ओबीसी में वोक्कालिगा और कुरूबा को छोड अन्य ओबीसी की संख्या लगभग 41 प्रतिशत है। इस वोट बैंक को लुभाने के लिये कांग्रेस, जेडीएस के अलावा बीजेपी ने पूरी ताकत लगा दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के पूरी शक्ति लगाने के बाद यह देखना होगा कि इस वोट बैंक को लुभाने कौन सी पार्टियां अधिक सफल रही। 

अल्पसंख्यक  - उपलब्ध आकंड़ो के हिसाब से कर्नाटक में अल्पसंख्यक समुदाय की संख्या लगभग 17 फीसदी है। इनमें से 12 फीसदी मुस्लिम और 5 फीसदी ईसाई, सिख, जैन व बौद्ध समुदाय है। हालात देख लगता नहीं है कि यह 17 प्रतिशत वोट का कुछ हिस्सा बीजेपी को जायेगा। इस पर कांग्रेस और जेडीएस का दखल माना जाता है। भारत की राजनीति में जातीय समीकरण का अपना विशेष महत्व है। इसलिये हर पार्टियां अब इसी हिसाब से अपनी राजनीतिक समीकरण बनाने में जुटी है। साल 2013 के आंकड़े पर नजर डाले तो 224 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस पार्टी 122 सीटें जीतने में सफल रही। लगभग 37 प्रतिशत वोट हासिल हुए। दूसरे नंबर जेडीएस और तीसरे नंबर पर बीजेपी थी वोट प्रतिशत के हिसाब से।

हालांकि दोनो ही पार्टियों को 40-40 सीटें मिली। जहां तक वोट प्रतिशत का मामला है तो इसमें भारी अंतर था जेडीएस को जहां लगभग 28 प्रतिशत वोट मिले तो बीजेपी को लगभग 20 प्रतिशत वोट। आगामी विधान सभा चुनाव 12 मई को है और मतगणना 15 मई को।