के चन्द्रशेखर राव की पहल संघीय मोर्चा, क्या राजनैतिक विकल्प दे पाएगा? - वरिष्ठ पत्रकार उपेन्द्र प्रसाद।

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के चन्द्रशेखर राव की पहल संघीय मोर्चा, क्या राजनैतिक विकल्प दे पाएगा? - वरिष्ठ पत्रकार उपेन्द्र प्रसाद।

तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चन्द्रशेखर राव ने गैर कांग्रेस और गैर भाजपा विकल्प के निर्माण के लिए कमर कस ली है। यह नरेन्द्र मोदी के खिलाफ राहुल गांधी को विकल्प के रूप में पेश करने की कांग्रेस की कोशिश को दी जा रही चुनौती के रूप में देखा जा रहा है। यदि भाजपा को अपने सहयोगी पार्टियों के साथ भी लोकसभा के आगामी चुनाव के बाद बहुमत नहीं मिले, तो फिर क्या फिर सरकार किस पार्टी के नेतृत्व में बने और उस गठबंधन का नेता कौन हो, यह आज को सबसे मौजू सवाल है।

कांग्रेस आज लोकसभा में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है। इस बात की पूरी संभावना है कि आगामी चुनाव के बाद भी वह ही दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनेगी। 2014 के लोकसभा चुनाव में उसे 44 सीटें मिली थीं, जो अब बढ़कर 48 हो गईहै। उसका अब पहले जैसा राष्ट्रीय विस्तार तो नहीं रहा है, लेकिन अभी भी वह अधिकांश राज्यों में भाजपा की नजदीकी प्रतिद्वंद्वी है। भाजपा के खिलाफ यदि माहौल बनता है, तो इसका सबसे ज्यादा फायदा बढ़ी सीटों के रूप में कांग्रेस को ही मिलेगा।

इसलिए यदि भाजपा विरोधी पार्टियां आपस मे मिलकर सरकार बनाती हैं, तो उसका नेतृत्व कांग्रेस के हाथ में ही रह सकता है और इसके नेता राहुल गांधी प्रधानमंत्री के पद के लिए सहज उम्मीदवार होंगे, लेकिन क्या राहुल अन्य नेताओं के बीच स्वीकार्य होंगे? यह लाख टके का सवाल है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अभी से स्पष्ट कर दिया है कि राहुल गांधी अगले चुनाव के बाद प्रधानमंत्री बनने का सपना देखना छोड़ दें। एनसीपी के नेता अपने राजनैतिक कदमों से राहुल के प्रति अविश्वास का भाव लगातार

जाहिर कर रहे हैं। नवीन पटनायक ने कभी कांग्रेस द्वारा विपक्षी एकता के लिए बुलाई गई बैठक में शिरकत नहीं की। मायावती खुद प्रधानमंत्री पद की दावेदार हैं और उत्तर प्रदेश में अखिलेश के समर्थक चाहते हैं आगामी लोकसभा चुनाव में मायावती को प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में उन्हें पेश कर लड़ा जाय और मुख्यमंत्री के पद के लिए बसपा की सहमति प्राप्त कर ली जाय।

इस राजनैतिक पृष्ठभूमि में तेलंगाना के मुख्यमंत्री द्वारा संघीय मोर्चे की बात करना बहुत मायने रखता है। कांग्रेस गैर भाजपा दलों में सबसे बड़ी होने के कारण विपक्षी एकता का नेतृत्व करने का दावा भले कर ले, लेकिन ऐसे क्षेत्रीय राजनैतिक दल बहुत कम हैं, जो उसके नेतृत्व को स्वीकार करने को तैयार बैठे हैं। क्षेत्रीय पार्टियों में राष्ट्रीय जनता दल ही एक मात्र ऐसी पार्टी है जो खुलकर कांग्रेस और राहुल के नेतृत्व पर न केवल अपनी सहमति का स्वर निकाल रहा है, बल्कि अन्य दलों को भी कांग्रेस का नेतृत्व करने की सलाह दे रहा है।

राजद के सुप्रीमों लालू यादवइ समय चारा घोटाले में सजा पाकर जेल में हैं, लेकिन भाजपा के खिलाफ विपक्षी एकता में कांग्रेस के नेतृत्वकारी भूमिका की वकालत वे कई बार कर चुके हैं। बिहार में उन्हें कांग्रेस की जरूरत है और वे खुद तो प्रधानमंत्री पद की दावेदारी नहीं कर सकते, इसलिए उन्हें राहुल को प्रधानमंत्री पद पर बैठा देखने में कोई आपत्ति नहीं है। इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि चारा घोटाले में पहली बार सजा पाने के बाद जब केन्द्र सरकार लालू को चुनाव लड़ने योग्य बनाने के लिए अध्यादेश लाने जा रही थी, तो उस प्रस्ताविक अध्यादेश की कॉपी राहुल ने ही फाड़ी थी और आज वही लालू राहुल गांधी के सबसे बड़े पैरवीकार बन रहे हैं।

पर मुख्य सवाल अपनी जगह पर कायम है और वह सवाल यह है कि क्या संघीय मोर्चा कांग्रेस को दोयम दर्जे की भूमिका में रहने के लिए बाध्य कर सकता है? इस सवाल का जवाब इसी तथ्य में निहित है कि यदि इस तरह का मोर्चा बने और चुनाव के बाद कांग्रेस से बहुत ज्यादा सीटें ले आये, तभी वह दबाव डाल सकता है। 

इतना तो स्पष्ट है कि तथाकथित संघीय मोर्चा इतनी सीटें जीतने की सोच भी नहीं सकता, जिससे वह कांग्रेस को पूरी तरह दरकिनार कर गैरकांग्रेस गैरभाजपा सरकार बना ले। चुनाव लड़ने के लिए तो इस तरह के मोर्चे की बात की जा सकती है, लेकिन सरकार बनाने के लिए कांग्रेस पर निर्भरता बनी ही रहेगी। इतिहास गवाह है कि आजतक ऐसी कोई सरकार भारत में नहीं बनी है, जो पूरी तरह गैरभाजपा और गैरकांग्रेस हो। मोरारजी सरकार गैरकांग्रेस सरकार थी, लेकिन उसमें भाजपा की पूर्ववर्ती जनसंघ के नेता शामिल थे। उसके बाद बनी चरण सिंह की सरकार कांग्रेस के समर्थन से बनी थी और उसके समर्थन वापस लेने के साथ गिर गई।

 

1989 में वीपी सिंह की सरकार भाजपा के समर्थन से बनी थी और उसके द्वारा समर्थन वापस लेने के बाद वह गिर गई। फिर चन्द्रशेखर सरकार कांग्रेस के समर्थन से बनी और समर्थन वापसी के कारण गिर गई। 1996 और 1997 की संयुक्त मोर्चा सरकारें कांग्रेस के समर्थन से बनीं और उसकी समर्थन वापसी से गिर गई।

यानी अबतक देश में ऐसी कोई सरकार नहीं बनी है, जो पूरी तरह गैरकांग्रेस और गैरभाजपा होने का दावा कर सके। आने वाले चुनाव के बाद यदि भाजपा की सरकार बनने से रोकना है, तो त्रिशंकु लोकसभा में कांग्रेस और तथाकथित संघीय मोर्चा को हाथ मिलाना ही होगा। सवाल सिर्फ इस बात का है कि उस गठबंधन का नेतृत्व कौन करेगा। संघीय मोर्चा में प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा रखने वाले नेताओं की भीड़ है। मुलायम सिंह यादव, मायावती, ममता बनर्जी, नवीन पटनायक, देवेगौड़ा, शरद पवार, चन्द्रबाबू नायडू जैसे नेता प्रधानमंत्री पद पर दावा कर सकते हैं। इनमें से किसी एक नाम पर राजी हो पाने इन नेताओं के लिए आसान नहीं होगा। जाहिर है, गेंद कांग्रेस के पाले में ही जाएगी।